‘‘आओ दीप जलाएं फिर से!’’ -गीतकार – छतिश द्विवेदी कुंठित’
गीत
‘‘आओ दीप जलाएं फिर से!’’
सनातन के पावन पर्व दीपावली पर सभी पाठकों को शुभकामना देते हुए उद्गार काव्य के इस अनुभाग में प्रस्तुत है गीत ‘‘आओ दीव जलाएँ फिर से!
इसके गीतकार हैं समाजसेवी, वरिष्ठ पत्रकार व अनिवार्य प्रश्न के प्रधान संपादक छतिश द्विवेदी कुंठित’
आओ सुबह बुलाएँ फिर से!
सभी दिशाओं को अंधियारा
आकर जैसे घेर लिया है,
कठिन घड़ी आई है इसमें
सूरज भी मुँह फेर लिया है,
पूर-पूर बाती आशाएं-
आओ दीप जलाएँ फिर से!
होठों पर कजली जम आई,
मौन हो गए फाग हमारे,
जाने क्यों ईश्वर बिगड़ा है,
बिगड़ गए हैं भाग हमारे,
छूकर सांसों के तारों को
जीवन को गुंजाएँ फिर से!
कोई आग लगाया हो, पर
सुषमा फूलों की मुरझाई,
कुदरत की सौंपी सुख-शोभा
हम सब ने मिलकर बिखराई,
कोंपल की अभिलाषा लेकर
आओ प्रिय मुस्काएँ फिर से!
इतना जीवट है अंधियारा
या फिर कोई बात रही है?
इतने दिन आए-लौटे हैं-
फिर भी जैसे रात रही है,
तेल, दिया औ’’ बाती जैसे
चलो एक हो जाएं फिर से!
इस धरती से आसमान तक
आओ ज्योति जलाई जाए,
जो पलकों से छूट गए हैं
उनसे प्रीत निभाई जाए,
इन किरणों की भांति नजर में
आओ प्रिय बस जाएं फिर से!
आओ दीप जलाएं फिर से!
Lyrics – “Aao Deep Jalayen Phir se!” – Lyricist Chhatish Dwivedi, social activist, senior journalist and editor in chief of Anivarya Prashan