उद्गार काव्य : देश पर गुमान : रुद्राणी घोष
देश पर गुमान युवा कवयित्री : रुद्राणी घोष मुझसे पूछा एक अंगरेज ने, तु़झे क्यों हैं इतना गुमान अपने देश पर? खाने को भरपेट खाना नहीं, आधी आबादी सोती है … Read More
देश पर गुमान युवा कवयित्री : रुद्राणी घोष मुझसे पूछा एक अंगरेज ने, तु़झे क्यों हैं इतना गुमान अपने देश पर? खाने को भरपेट खाना नहीं, आधी आबादी सोती है … Read More
कविता: सुख-दुख दोनों अतिथि हमारे : कंचन सिंह परिहार सुख-दुख दोनों अतिथि हमारे। कभी साथ न दोनों आते, हरदम रहते आते-जाते, कब है आना कब है जाना, कितने दिन कब … Read More
गुलाबी इश्क शहर के शोर सा मचलता मेरा मनगर्मी की भोर सा खिलता गगन आये हो सो ठीक है साथ लाना वाकई जरूरी थाएक व्याकुल सा मन ? आये तो … Read More
ये मजदूर औरतें दिन रात करती हैं काम नहीं जानती आराम चलाती हैं फावड़ा खोदती हैं मिट्टी पाथती हैं ईंट छाती के बल खीचती हैं सगड़ी दूधमूँहें बच्चे को … Read More
शाइर महेन्द्र तिवारी ‘अलंकार’ चलो हम गरीबों का घर देख आयें। बेनूर बेबस नजर देख आयें। सामान कोई नहीं जिन्दगी का मगर जिन्दगी का सफर देख आयें। कीचड़ सनी राह … Read More