कविता : अधूरा छूट गया : डॉ. मधुबाला सिन्हा
कविता : अधूरा छूट गया : डॉ. मधुबाला सिन्हा
मान मिला सम्मान मिला, पर
कुछ तो अधूरा छूट गया!
सपनलोक का तू तो कुँवर था
मैं तेरे सपनों की रानी थी,
कई जन्मों से साथ चले हम
शायद यही कहानी थी,
पर पीछे कुछ टूटा लगता
जैसे बिछड़ा रूठ गया!
मान मिला सम्मान मिला, पर
कुछ तो अधूरा छूट गया!
कसमें वादे मौन से लगते
बौना बनकर साथ चले,
कोई बुलाता अपना कह कर
मुखरित हो कर चले भले,
अँधियारी गलियों में छुपता
जैसे सबकुछ लूट गया!
मान मिला सम्मान मिला, पर
कुछ तो अधूरा छूट गया!
बिन पंखों के उड़ती जाऊँ
नील गगन की आस लिए,
दाना चुगना नियति अपनी
बिन कोई आवाज किए,
बन के बहेलिया तूने पुकारा
साँस की डोरी थम जो गया!
मान मिला सम्मान मिला, पर
कुछ तो अधूरा छूट गया!
कवयित्री डॉ. मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी, चंपारण, बिहार की रहने वाली हैं। अभी वाराणसी में प्रवासित हैं।