This time Vasant will have to come to Paush to welcome Lord Shri Ram.

इस बार बसंत को प्रभु श्रीराम की अगवानी के लिए पौष में ही आना होगा – डॉ. चन्द्र भाल ‘सुकुमार’


स्तम्भ: ‘डायरी लिखनी है’: भाग एक


रोज रात को सोने से पहले डायरी लिखने की मेरी पुरानी आदत है। कभी भूल भी जाता हूँ तो धर्मपत्नी याद दिला देती हैं। बिना डायरी लिखे मुझे नींद भी तो नहीं आती है। कभी-कभी तो डायरी में लिखने को कुछ सूझता ही नहीं। कुछ नहीं लिखना है यही लिख देता हूँ।
पिछला स्तंभ ‘समय, समाज और साहित्य’ अधिक नहीं चल पाया। सात अंक ही लिख पाया कि बुखार -डेंगू जैसी बीमारियों का डंक सहते-संभलते दो-तीन महीने निकल गए। एक नए स्तंभ की योजना -परिकल्पना में कई नाम आए-गए। कोई जंचा नहीं। आज अचानक ख्याल में आया कि डायरी तो रोज ही लिखता हूँ। फिर क्यों न इसे ही स्तंभ का शीर्षक बना लूँ। वैसे भी, डायरी का आयाम बहुत विस्तृत है। आप जो चाहें लिखें. न तो कापीराइट का बंधन और न ही किसी के शिकवा-शिकायत का डर। आप को कुछ बुरा लगे तो मत पढ़िए। डायरी कोई पब्लिक प्रापर्टी थोड़े ही न है।

इधर के लम्बे अंतराल में सुख-दुख की कई घटनाएँ घटित हुईं जिनके बारे में मुझे आपको बताना जरूरी लगता है। मेरा मन भी तो स्वयं बेचैन है। लेखनी भी विह्वल है। मगर आज नहीं, आज नए स्तंभ का शुभारंभ है तो महाकवि व्यास की तरह श्रीगणेश जी से प्रार्थना करता हूँ कि इसे यूँ ही मोबाइल के जरिए लिपिबद्ध करते रहें। प्रवाह कहीं रुके न, थमे न।
मित्रों का स्नेह-संबल पूर्ववत् मिलता रहे।

कहीं पढ़ा है कि बसंत के आगमन की तैयारी पौष से ही शुरू हो जाती है। हांलांकि, इस बार पौष की ठंडक अपने उग्र रूप में है। पारा शून्य को स्पर्श कर रहा है। ज्यादातर ट्रेनें -फ्लाइटें निरस्त या विलंबित हैं। मगर बसंत को तो आना ही है। बसंत तो आएगा ही। इस बार वसंत को प्रभु श्रीराम की अगवानी के लिए पौष में ही आना होगा। चारों तरफ मंगल ध्वनियां हो रही हैं। देखो वसंत आ रहा है। स्वागत के थाल सजाओ कि जन-जन के प्रभु श्रीराम एक बार फिर अयोध्या के अपने प्रासाद में लौट रहे हैं।
।। मंगल भवन अमंगल हारी ।।


डॉ. चन्द्र भाल ‘सुकुमार’
17/01/2024
काशी


स्तम्भ लेखक वरिष्ठ साहित्यकार व पूर्व न्यायाधीश हैं।