Indian medical system 'Ayurveda' very successful in prevention of corona epidemic Vaidya Rohit Pandey

कोरोना महामारी के रोकथाम में भारतीय चिकित्सा पद्धति ‘आयुर्वेद’ काफी सफल : वैद्य रोहित पाण्डेय


वैद्य रोहित पाण्डेय


महामारी अर्थात जनमार या जनपदोध्वंश समय-समय पर मानव सभ्यता की क्षति करती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कोरोना वायरस का संक्रमण विकराल रूप लेकर महामारी ही बन चुका है। मूलतः यह व्याधि प्राणवह स्रोतस {श्वसन प्रणाली} का रोग है। इसमें रोगी को जुकाम, खासी, बुखार व सांस की समस्या होने के अनेक लक्षण मिलते हैं।
इस रोग का प्रसार संक्रमित रोगी की श्वास, उसके द्वारा प्रयोग में लायी गई वस्तुओं को छूने के पश्चात हाथ, मुख या नाक पर लगानें से होता हैं। यह किसी भी व्यक्ति को हो सकता है। किंतु यदि आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता दृढ है तो आप पर इसका प्रभाव नहीं आता है तथा दवा व अन्य उपायों से रोगी के शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता को पुनः मजबूत करने से यह रोग स्वतः शांत हो जाता है।
आज समस्त सरकारी व् गैर सरकारी स्वास्थ संस्थायें इस रोग से बचने के कई उपाय समझा रही हैं, सभी सार्वजनिक स्थानों को नियमित अंतराल पर सेनेटाइज किया जा रहा है, जन सामान्य को मास्क व सेनेटाइजर के प्रयोग करने व भीड़ भाड़ से बचने का सुझाव दिया जा रहा है। पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति द्वारा त्वरित, आंशिक व लाक्षणिक लाभ भी दिया जा रहा है।
किंतु यह सभी उपाय कोरोना संक्रमण का रोकथाम कर पाने में पूर्ण सहायक सिद्ध नहीं हो पा रहें हैं। इसका कारण है अधर्म। आचार्य चरक द्वारा जनपदोध्वंश अध्याय में कहा गया है कि मानव द्वारा उसके सामाजिक व धार्मिक कर्तव्यों को न करना ही अधर्म है। इस कारण से देश-काल-वायु-जल दूषित होकर महामारी को उत्पन्न करते हैं।
ऐसी आपदा में आयुर्वेद महामारी के रोकथाम में काफी मदद कर सकता है। इतिहास में इसके पर्याप्त प्रमाण भी मौजूद हैं जब हमारे समुदायों को निरोग करने व भयानक संक्रामक रोगों से बचाने में प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान ने महती भूमिका निभाई है। ऐसे समय में आयुर्वेद के अनुसार निम्न उपाय अपनाए जाने चाहिए-
निदान परिवर्जन-
रोग उत्पादक कारणों से दूरी बनाएं।
धूपन-
धूप, नीम, लोध्र, अगरु, गुग्गुलु, लोबान का उपयोग करें।
एकांतवास-
प्रभावित स्थान व व्यक्ति से उचित दूरी रखें।
औषधीय भोग-
स्वस्थ व्यक्ति द्वारा रसायन का प्रयोग जैसे च्यवनप्राश खाएं।
व्याधि अनुरूप चिकित्सा-
चूँकि यह प्राणवाहस्रोतस की व्याधि है, अतः इस हेतु कवल, गंडूष, शिरोविरेचन व प्राणायाम अधिक लाभप्रद है।
कुछ प्राथमिक व घरेलु उपाय भी बेहद कारगर हैं उउनका भी प्रयाग करके लाभ लिया जा सकता है। ये निम्न हैं-
काढा, तुलसी, सोंठ, मरीच , पिप्पली,
कवल- गर्म जल, हल्दी,
नस्य- अणुतेल, सरसों तेल, भाप,
औषधीय प्रयोग- बच्चों में- नियमित स्वर्ण प्राशन,
वयस्क में- गुडूची घन वटी 500 मिलीग्राम
त्रिभुवन कीर्ति रस 500 मिलीग्राम
महासुदर्शन घन वटी 500 मिलीग्राम
शिरिषादि क्वाथ 20 मिलीग्राम
व्योषादी / एलादी / खादिरादी गुटिका – चूषण हेतु
आणि व उर्वी मर्म उत्प्रेरण

औषधि के इस्तेमाल करने से पहले वैद्यकीय परामर्श लेना आवश्यक है। अगर मरीज जरुरी समझें तो हमारे संपर्क नम्बर पर फोन कर सकते हैं। संपर्क: 87379 32244


लेखक मर्म चिकित्सक व योग प्रशिक्षक हैं।

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