अनेक सवाल पैदा कर मिट गया विकास : कानपुर कांड समाप्त!
अनिवार्य प्रश्न । ब्यूरो संवाद
वाराणसी-कानपुर। 9 जुलाई को मध्यप्रदेश में अनायास दर्शन के बहाने पुलिस से स्वयं को पकड़वाया कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों का हत्यारा विकास दूबे 10 जुलाई की सुबह पुलिस एनकाउंटर में मारा गया। यूपी पुलिस अधिकारियों के अनुसार विकास दूबे को उज्जैन से कानपुर ले जा रही यूपी पुलिस के काफिले की गाड़ी 10 जुलाई की सुबह दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी।
उक्त सड़क हादसा कानपुर टोल से सिर्फ 25 किलोमीटर पहले हुआ। पुलिस की सही या झूठ पर बताई गई कहानी के अनुसार यूपी एसटीएफ की टीम विकास दूबे को लेकर जैसे ही कानपुर पहुंची, वह गाड़ी में सुरक्षाकर्मियों की पिस्टल छीनने लगा। इसी बीच वाहन का संतुलन बिगड़ने के कारण गाड़ी पलट गई। गाड़ी पलटते ही विकास पुलिस पर फायरिंग करते हुए भागने लगा।
कुछ सुरक्षाकर्मियों ने अपने बचाव में गोलियां चलाईं। मुठभेड़ हुआ और उसमें विकास गंभीर रूप से घायल हो गया। सुरक्षाकर्मी उसे लेकर हैलट अस्पताल पहुंचे जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पुलिस सूत्रों के अनुसार उक्त कार हादसे में यूपी के तीन पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
उल्लेखनीय है कि विकास दूबे को गुरुवार सुबह उज्जैन (मध्य प्रदेश) में पुलिस ने गिरफ्तार किया। सात दिन की तलाश के बाद मध्य प्रदेश पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। इसके बाद एमपी की पुलिस ने विकास दूबे को उज्जैन कोर्ट में पेश कर देर शाम यूपी एसटीएफ की एक टीम को सौंप दिया था।
सूत्रों का कहना है कि विकास के 5 अन्य करीबी भी इन दिनों पुलिस एनकाउंटर में ढेर हो चुके हैं। मारे गए करीबियों के अलावा अब-तक दो अन्य साथी दयाशंकर कल्लू और श्यामू वाजपेयी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गए साथियों में प्रेम प्रकाश (विकास दूबेे का मामा), अतुल दूबेे (विकास दूबे का भतीजा), अमर दूबे (विकास दूबेे का राइड हैंड), प्रभात और प्रवीण उर्फ बउवा। इसके साथ ही वारदात में शामिल 14 आरोपितों को जेल भेजा जा चुका है। एसएसपी दिनेश कुमार ने बताया है कि आरोपितों के खिलाफ पुलिस ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रही है।
सीओ, एसओ समेत आठ पुलिस कर्मियों की हत्या के मामले में विकास समेत 18 लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज की गई थी। जांच के बाद और 15 लोगों के नाम सामने आए हैं। इन सभी के नाम भी एफआईआर में बढ़ाए जाएंगे। विकास दूबे पर पांच लाख और इन सभी फरार साथी अपराधियों पर 50-50 हजार का इनाम घोषित किया गया था।
हालांकि समाज में कई सारे लोग इस बात को भी कर रहे हैं कि अगर विकास दूबे को गिरफ्त से भागना होता तो पकड़ाता क्यों? उत्तर प्रदेश की एसटीएफ पुलिस पास के राज्य से एक अपराधी को लाने में असमर्थ क्यों रही? या पुलिस उसे मारने के लिए झूठी कहानी बना रही है? या अपना दामन साफ बचाने के चक्कर में पुलिस कुचक्र रच डाली है। ऐसे में चाहे जो भी हो आम आदमी का विश्वास इस पूरे मामले में सरकार और पुलिस दोनों से कमजोर हुआ है और साधारण आदमी इस नाटकीय घटनाक्रम से हिल गया है। अन्ततः माफिया विकास दूबे कई सवाल कानपुर की जमीन में बोकर मिट गया है।
अब आगे वर्षों तक पुलिस की सच्ची-झूठी कहानियां और तैयार की परिभाषाएँ इसका जवाब देती रहेंगी।