स्नेह से सजी नई शुरुआत: भारत में गोद लिए गए बच्चों की कहानियों में उमड़ता अपनापन
अनिवार्य प्रश्न। संवाद।
नई दिल्ली। “मैं तुमसे प्यार करता हूं मां, क्योंकि तुम मुझे खेलने के लिए बाहर ले जाती हो…” – छोटे मोक्ष की कांपती हुई लिखावट में लिखे इन शब्दों ने उसकी मां की आंखों में आंसू ला दिए। यह सिर्फ़ एक मासूम बच्चे की ओर से लिखा गया प्यारा सा नोट नहीं था – यह उन हजारों बच्चों की आशाओं, इंतजारों और प्रेम की प्रतीक्षा का प्रतीक था, जो आज गोद लेने की प्रक्रिया के ज़रिए अपना घर, अपना परिवार पा रहे हैं।
मोक्ष, जिसे जन्म के बाद एक दिन में ही छोड़ दिया गया था, जन्मजात “नॉक-नीज” समस्या के साथ दुनिया में आया था। चार साल तक उसने संस्थागत देखभाल में अपना बचपन बिताया, जहां हर बार संभावित माता-पिता उसकी मेडिकल स्थिति पर अटक कर आगे नहीं बढ़ सके। लेकिन फिर 2021 में एक ऐसा दंपति उसकी ज़िंदगी में आया जिन्होंने न उसके पैरों को देखा, न ही उसकी बीमारी को – उन्होंने बस उसे देखा, “अपने बेटे” के रूप में।
कोविड की दूसरी लहर ने मिलन को कुछ समय के लिए टाल दिया, लेकिन भावनात्मक जुड़ाव बना रहा – स्क्रीन के जरिए कहानियाँ, मुस्कानें और वादे। फिर नए साल से ठीक पहले, मोक्ष को वह मिला जिसका उसे वर्षों से इंतज़ार था – एक स्थायी घर और बिना शर्त स्नेह। आज मोक्ष न सिर्फ़ स्वस्थ है, बल्कि एक सक्रिय, आत्मविश्वासी बच्चा है – जो नाटक करता है, तैरता है और पार्कौर की कलाबाजियाँ करता है। यह कहानी न सिर्फ गोद लेने की सफलता है, बल्कि समाज में बढ़ते सकारात्मक दृष्टिकोण की मिसाल है।
भारत में गोद लेने की प्रक्रिया, जो कभी जटिल और धीमी समझी जाती थी, अब अधिक मानवीय, सरल और भरोसेमंद बन रही है। वित्त वर्ष 2024-25 में रिकॉर्ड 4,515 बच्चों को गोद लिया गया, जो बीते एक दशक का सर्वोच्च आंकड़ा है। इनमें से 4,155 गोद लेने भारत में ही हुए, यह बताता है कि भारतीय समाज में दत्तक ग्रहण को लेकर धारणा कितनी बदली है। अब यह केवल जरूरत नहीं, बल्कि खुले दिल से किया जाने वाला चयन बनता जा रहा है।
इस बदलाव के पीछे केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला यह निकाय सुनिश्चित करता है कि गोद लेने की प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी, पारदर्शी और नैतिक हो। CARA ने अंतर-देशीय गोद लेने के लिए 1993 के हेग कन्वेंशन के प्रावधानों को अपनाया है और घरेलू गोद लेने को बढ़ावा देने के लिए सोशल मीडिया अभियान, प्रशिक्षण सत्र और जागरूकता कार्यशालाएं भी चला रहा है।
2023-24 में 8,500 से अधिक बच्चों की पहचान कर उन्हें गोद लेने योग्य सूची में शामिल किया गया – यह न केवल आंकड़ों की दृष्टि से, बल्कि मानवीय दृष्टि से भी एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। साथ ही, देश भर में 245 नई गोद लेने की एजेंसियों को नेटवर्क से जोड़ा गया, जिससे प्रक्रिया और अधिक सुलभ हो गई।
जहां एक ओर सीएआरए यह सुनिश्चित करता है कि गोद लेने की प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी हो, वहीं वह इस बात पर भी ज़ोर देता है कि यह केवल कागज़ी प्रक्रिया नहीं – बल्कि माता-पिता और बच्चे की एक साझा, भावनात्मक यात्रा है। अवैध रूप से गोद लेना, जो बाल तस्करी जैसा गंभीर अपराध माना जाता है, किशोर न्याय अधिनियम, 2021 के अंतर्गत दंडनीय है।
भारत में गोद लेने की बदलती तस्वीर केवल नीतिगत उपलब्धियों की कहानी नहीं है – यह उन हजारों बच्चों की कहानी है जो एक बार पीछे छूट गए थे, लेकिन अब उन्हें अपनाने वाले हाथ मिले हैं। मोक्ष जैसे बच्चों की कहानियां हमें यह विश्वास दिलाती हैं कि हर बच्चा, चाहे उसकी स्थिति कुछ भी हो, स्नेह, सम्मान और अवसर पाने का अधिकारी है।
भारत में गोद लेना अब सिर्फ़ जरूरतमंदों की बात नहीं रही – यह दिल से लिया गया वह फैसला है, जो न केवल एक बच्चे की ज़िंदगी बदलता है, बल्कि समाज को भी अधिक संवेदनशील और समावेशी बनाता है।