नज्म : चलो हम गरीबों का घर देख आयें।
शाइर
महेन्द्र तिवारी ‘अलंकार’
चलो हम गरीबों का घर देख आयें।
बेनूर बेबस नजर देख आयें।
सामान कोई नहीं जिन्दगी का
मगर जिन्दगी का सफर देख आयें।
कीचड़ सनी राह जाती है दर पे,
रौशन चरागां नहीं कोई घर पे,
है गिरके सम्हलना, सम्हल करके गिरना
वो फिसलन भरी रहगुजर देख आयें।
टूटी है सांकल औ टूटा सदर है,
गमे जिन्दगी का सियहपोश घर है,
तकदीर ने इस कदर जिनको लूटा
हम उनके दिलों का सबर देख आयें।
फटी सी चटाई पे बिखरी सी काया,
हवा दामनी कर रहा एक साया,
जो लेटा था वो भूख से मर गया था
औ’ दूजे पे ढहती कहर देख आयें।
मरा है जईफी से ये इत्मीनां था,
उजाले में देखा तो वो नौजवां था,
जहां मुल्क की उम्र मरती है भूखों
तो शामे-अवध की सहर देख आयें।