आजादी में योगदान और बलिदान देनेवाली विरांगनाओं का इतिहास : अस्मिता प्रशांत ‘पुष्पांजलि’
हम जब भी उंचे निल गगन में शान से लहराते तिरंगे को राष्ट्रगीत के साथ सलामी देते हैं, तो अपनी छाती को गर्व से और भी दो इंच फुला हुआ महसूस करते हैं। हम आज आजाद देश में, भारतीय नागरिक बनकर आजादी से सॉस ले रहे है। किंतू अगर हम 15 अगस्त 1947 पूर्व की बात करें, तो उस वक्त हमारे देशवासियों के यह हालात नहीं थे। हमारे देश पर 200 साल तक अंग्रेज़ो द्वारा शासन करके, 200 साल की अंग्रेज़ो की गुलामीमें रहने के पश्चात 15 अगस्त 1947 यह वह स्वर्णिम दिन आया, जब हमने सार्वभौम भारत में प्रवेश किया।
1757 को प्रथम बार ईस्ट इंडिया कम्पनी ने प्लासी का युद्ध जीतकर भारत पर अपना हुकूम चलाना आरंभ किया। और यही से देश के परतंत्र की शुरुआत हुई ऐसा हम कह सकते है।
करीबन 100 साल पश्चात याने 1857 को मंगल पांडे द्वारा ष्भारतीय विद्रोहष् जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह, भारतीय विद्रोह के नाम से जानते हैं। यह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध ससस्त्र विद्रोह के रूप में जाना जाता है। यह विद्रोह 2 साल तक चला और विद्रोह का अंत ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त होने पर होकर, पूरे भारत पर ष्ब्रिटिश ताजष् मतलब ब्रिटिश राजघराने का शासन आरंभ हुआ। जो अगले 90 वर्ष तक चलता रहा। तब पूर्व ईस्ट इंडिया कंपनी के क्षेत्रों को मिलाकर ष्भारतीय साम्राज्यष् का निर्माण हुआ।
1857 के इस प्रथम स्वाधिनता संग्राम में, पुरूषों के साथ महिलाओं ने भी हथियार उठाते हुए, स्वतंत्रता संग्राम का आगाज किया। जिसमें स्वतंत्र राज्य झांसी की रानी लक्ष्मी बाई , झलकारी बाई, बेगम हजरत महल का नाम हम कहीं भी भुला नहीं सकते। पुरूष योद्धा के साथ साथ इन विरागणाओंके नाम भी इतिहास में शामिल हो कर, इनके महान कार्य, बलिदान की गाथा हमें सुनाते हैं।
1988 में भारत सरकार द्वारा, प्रथम स्वाधीनता संग्राम के नाम से, उन योद्धा और शहिद, जिन्होने इस्ट इंडिया कंपनी के साथ किए इस युद्ध में अपना बलिदान दिया, उन योद्धाओ को, उन वीरांगनाओं को समर्पित एक डाक टिकट जारी किया गया। जिसमे नानासाहेब, मंगल पांडे, बहादुर शाह जफर, तात्या टोपे के साथ-साथ रानी लक्ष्मीबाई और बेगम हजरत महल इनके नामों का उल्लेख किया गया है।
1857 से आरंभ हुई स्वाधिनता की इस जंग में आगे कई योद्धा, शहिद, स्वतंत्रता संग्रामी जुड़ते गये। महिलाओं ने भी अपना योगदान देने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
विजयालक्ष्मी पंडित जो मोतिलाल नेहरू की बेटी थी, और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सहभागी होकर ‘सविनय अवज्ञा’ आंदोलनकर्ता थी।
इंदूताई पाटनकर यह महाराष्ट्र के कासेगाव की एक यैसी स्वतंत्र सेनानी एवं सामाजिक कार्यकर्ता थी, जो उम्र के १०-१२ साल से ही, स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी थी। वह कॉग्रेस की प्रभात फेरी में सहभागी होकर, स्वतंत्रता के आंदोलनकर्ताओं को सहायता पहुंचाने का कार्य करती। 1943 में ष् प्रति सरकारष् इस गुप्त आंदोलन का वह हिस्सा बनी और क्रांतिकारीओंको बारूद पहुंचाने का कार्य करती। दुर्गाबाई देशमूख, अरूणा आसफ अली, कॅप्टन लक्ष्मी सहगल, सरोजिनी नायडू, निवेदिता बहन, और भी अनेक विरांगनाओं के नाम स्वतंत्रा सेनानी की कड़ी में जुडते गये।
इतिहास के पन्ने खोलने पर, देश की आजादी में योगदान और बलिदान देनेवाली हमारी विरांगनाओं के त्याग और समर्पण को हम जान सकते हैं। और जानने के बाद हम उनके बलिदान का एहसान कभी भी उतार नही पायेंगे।