भगवान विश्वकर्मा की आराधना कैसे करें? — डॉक्टर डी. आर. विश्वकर्मा
17 सितंबर के पावन दिवस पर विशेष प्रस्तुति।
विश्वकर्मा भगवान सृष्टि के निर्माता परम पुरुष विश्व देव है,जिन्हें सभी धर्मों के लोग मानते आए हैं, परन्तु विडम्बना देखिए, कि हम सब के कुल देवता वेदोक्त परम ब्रह्म होते हुए भी हम ही लोग उनकी आराधना प्रार्थना पूजा पाठ पर पूरी तरह ध्यान नहीं देते। यह अपने समाज की अत्यन्त ही दयनीय स्थिति का द्योतक है। कस्तूरी जैसे मृग की नाभि में होती है और उसे ढूँढने के निमित्त मृग़ वन जंगल भटकता है वही हाल अपनी समाज का भी हो गया है, तो अपने कुल की प्रतिष्ठा कैसे उच्च होगी? विचारणीय यक्ष प्रश्न, हमारे समाज के बुद्धिजीवियों के समक्ष है।
तो समाज के भ्राता श्री और शक्ति स्वरूपा बहनों का मैं इस लेख के माध्यम से आवाहन करता हूँ कि यदि आप की दिनचर्या बहुत व्यस्त है, तो सप्ताह में एक दिन रविवार जो भगवान विश्वकर्मा का शुभ दिन है, को उनकी पूजा कर लें। यदि यह भी सम्भव न हो तो माह में पड़ने वाली अमावस्या जो भगवान विश्वकर्मा की आराधना के लिए पवित्र दिन माना जाता है, पर ही पूजा करें, या वर्ष में 17 सितंबर के दिन भगवान विश्वकर्मा की आराधना प्रार्थना पूजा पाठ अवश्य करें। कुछ भाई कहेंगे कि पूजा से क्या होता है तो यह सच मान लें, इससे आत्मबल की वृद्धि होती है। व्यक्ति में सात्विकता आने लगती है और उसका मन दुर्गुणों और दुर्व्यसनों से हटने लगता है। पूजा से घर का वातावरण आध्यात्मिक होना शुरू होने लगता है। यही इसका अनुभूत प्रत्यक्ष लाभ है। यदि लाभ द्विगुणित करना चाहते हैं, तो हमें अपने कर्मों की शुचिता पर भी साथ साथ ध्यान देकर जीवन गुज़ारना होगा, क्योंकि साथियों कहते हैं कि “अवश्यमेव भोक्तव्यम् कृत कर्म शुभाशुभम्”यानि किये गये कर्मों का फल हमें अवश्य भोगना पढ़ता हैद्य यदि शुभ कर्म होगा तो पुण्य मिलेगा, और यदि वह अशुभ कर्म हैं तो अशुभ फल मिलेगा।
वैसे भी यह ज्ञात ही है कि” जैसी करनी वैसा फल, आज नहीं तो निश्चय कल ”अंग्रेज़ी में भी कहते हैं कि-
“mother nature do not spare anyone it also gives ballancing effect to all deeds to all concern”
तो आइये! हम प्रतापी वंश विश्वकर्मा कुल के सभी भाई बहन अपने अपने घरों में भगवान विश्वकर्मा के पूजा का विधान करें। प्रति दिवस सुबह शाम उनको याद करें और अपने परिवार समाज व कुल को प्रगति के पथ पर अहर्निश ले जाने में सक्षम बनें।
दिनांक 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा की आराधना कैसे करें इसकी संक्षिप्त जानकारी-
यहाँ मैं बता रहा हूँ- पूजा विधान– भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा के सामने बैठ कर, एक गिलास में गंगा जल लेकर, आम्र पल्लव से निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए सभी चीजों पर छिड़कें।
ॐ अपवित्रो पवित्रो वा सर्वावस्थाम् गतोपिवा।
य: स्मरेत विश्व देव स बाह्य अभ्यंतरःशुचि:।।
अर्थात् कोई भी मनुष्य जो पवित्र हो, अपवित्र हो या किसी स्थिति को प्राप्त क्यों न हो जो विश्व देव का स्मरण करता है, वह बाहर भीतर से पवित्र हो जाता है।-
अब बायें हाथ में एक चम्मच जल लें, दाहिनें हाथ से ढक लें। इसके पश्चात “ ॐ विश्वकर्मणे नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए भावपूर्वक अपने ऊपर छिड़क लें। तत्पश्चात् निम्न मंत्र को बोलें–
आगच्छ विश्व देव स्थाने चारु स्थिरो भव।
यावत्वम् पूजा करिष्यमी तावत्त्वम सन्निधो भव।
तुरन्त इसके बाद भगवान विश्वकर्मा को तिलक लगायें,तत्पश्चात् अनामिका अंगुलि से आप भी अपने माथे पर टीका लगा लें।
पुनः “भुवः सह: “ कहते हुए दीपक जलायें (यदि घी का हो तो अति उत्तम नहीं तो तिल के तेल का भी दीपक शुद्ध होता है)
प्रार्थना करे !
भो दीप!देव स्वरूपत्वम कर्म साक्षी निर्विघ्नम कृत।
यावत कर्म समाप्ति:तावत्वम् सुस्थिरो भव।।
इसके पश्चात धूप अगरबत्ती माला फूल अर्पित करे और मिष्ठान भी चढ़ावें।
इसके बाद भगवान विश्वकर्मा को मन ही मन पवित्र भाव से याद करते हुए निम्नांकित कथन बोलें-
हे मेरे सर्वाेपरि प्रभु! तुम परम पुरुष विधाता हो। तुम मेरे अंतःकरण में विराजमान होकर मेरे सभी कष्टों दुर्गुणों दुर्व्यसनों को मुझसे दूर करो। मेरे सभी मनोरथों को पूरा करो और हमें सन्मार्ग पर चलाओ।
अथवा मेरी रचित निम्न पंक्तियाँ भी सॉर्ट कट में पढ़ सकते हैं भाव उपरोक्तानुसार ही आ जाएगा।
तू विश्व देव, ब्रह्मांड के नायक,
कौशल सृजन के ज्ञाता हो।
तुमसे, बड़ा न जग में कोई
जड़ चेतन निर्माता हो।
कृपा करो तुम अंतर्मन में,
दुख भंजन, सुख दाता हो।
दुर्व्यसनों से मुक्ति दिला दो,
सबके मुक्ति प्रदाता हो।
आलोकित पथ करो हमारा,
दिन दुःखी के त्राता हो।।
सबसे अंत में, हाथ में पुष्प लेकर भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा पर पुष्पार्पण करें।
“ॐ भू: अग्नायात्मने हृदयाय” — यह मंत्र कहते हृदय स्पर्श करें।ॐ भुव: प्राणापत्यत्मने शिरसे स्वाहा,,,,यह मन्त्र कहते हुए मस्तक का स्पर्श करें। “ॐ भुरभूव: स्व:सत्यात्मने कवचाय हुँ” — कहते हुए दोनों कंधों को स्पर्श करें।ॐ भुर्भुव: स्व: सत्यात्मने अस्त्राय फट,,,,,,कहते हुए चुटकी बजाए।
अब हाथ में अक्षत लेकर उसमें थोडा गंगाजल मिलाकर चारों दिशाओं में फेकतें हुए भगवान विश्वकर्मा से यह कामना करे कि हे! प्रभु मेरी प्रार्थना में आप सदैव पधारते रहें।
जिनके रोज़ी रोज़गार या कल कारख़ाने नहीं चल पा रहें हों या बंद हो गये हों,उसे संचालित करने हेतु भी, भगवान विश्वकर्मा की पूजा अचूक लाभ प्रदान करती है, विश्वास न हो तो कर के देखें।
डॉक्टर डी. आर. विश्वकर्मा
लेखक जिला विकास अधिकारी रहे हैं।