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उद्गार काव्य : देश पर गुमान : रुद्राणी घोष

देश पर गुमान युवा कवयित्री : रुद्राणी घोष मुझसे पूछा एक अंगरेज ने, तु़झे क्यों हैं इतना गुमान अपने देश पर? खाने को भरपेट खाना नहीं, आधी आबादी सोती है … Read More

लम्बा संघर्ष और अगणित बलिदान के बाद अयोध्या में बस पाए श्रीराम

भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण के लम्बे संघर्ष, उसके धार्मिक व सामाजिक महत्ता और उसके शिलान्यास में प्रयुक्त हर ईंट में भरे भावसिक्त संदेश को समझा रहे हैं नोएडा के … Read More

संस्कृति मंत्रालय आयोजित कर रहा है देशभक्ति कविता प्रतियोगिता

अनिवार्य प्रश्न । संवाद नई दिल्ली। स्वतंत्रता दिवस समारोह के तहत संस्कृति मंत्रालय का एक स्वायत्त संगठन- सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र (सीसीआरटी), माइजीओवी डॉट इन की साझेदारी में, एक राष्ट्रीय स्तर की … Read More

34 सालों बाद बदली शिक्षा की सूरत

नई शिक्षा नीति अंग्रेजी के साथ मातृभाषा के अलावा संस्कृत व देश की अन्य भाषाओं के सीखने पर जोर देने वाली है ऐसा मानते हुए विश्लेषण कर रहे हैं लेखक … Read More

मुंशी प्रेमचंद के 140 वें जन्मदिवस के अवसर त्रिदिवसीय चित्रकला प्रतियोगिता का हुआ आयोजन

अनिवार्य प्रश्न । ब्यूरो संवाद वाराणसी। कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी के 140 वें जन्मदिवस के अवसर पर महापंडित राहुल सांकृत्यायन शोध एवं अध्ययन केंद्र वाराणसी द्वारा उनके प्रसिद्ध उपन्यास … Read More

‘गोदान’ का सामाजिक विस्तार : विन्ध्यवासिनी मिश्रा

’गोदान’ का सामाजिक विस्तार औपनिवेशिक भारत में तमाम आर्थिक सामाजिक शैक्षिक असमानताओं या यूँ कहें कि अनेक असंतुलनों के काल में महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद जी के लेखन की पराकाष्ठात्मक … Read More

कविता: सुख-दुख दोनों अतिथि हमारे: कंचन सिंह परिहार

कविता: सुख-दुख दोनों अतिथि हमारे  : कंचन सिंह परिहार सुख-दुख दोनों अतिथि हमारे। कभी साथ न दोनों आते, हरदम रहते आते-जाते, कब है आना कब है जाना, कितने दिन कब … Read More

सामयिक संस्मरणीय आलेख: कोरोनाकाल में एक सफर: प्रफुल्ल सिंह ‘बेचैन कलम’

‘‘कोरोनाकाल में एक सफर’’ में जीवन की दुश्वारियों व नवप्रकट असंतुलित संवेदनाओं पर अतिसरलता पूर्वक अतिसामयिक संस्मरणीय आलेख प्रस्तुत कर रहे हैं साहित्यकार प्रफुल्ल सिंह ‘बेचैन कलम’ जीवन हमेशा एक-सा … Read More

लघुकथा : अनुचित फीस : नीरज त्यागी

अनुचित फीस : नीरज त्यागी लॉकडाउन के समय में अपने बच्चों की पढ़ाई खराब होने का डर शर्मा जी को लगातार हो रहा था। फिर कुछ खबर सी आई कि … Read More

आलेख: बाजारवाद की हमजोली बना दी गई सुन्दरता: सलिल सरोज

भौतिक युग में आज तक अपरिभाषित सुन्दरता, उसमें भटके स्त्री समाज और उसपर सौन्दर्य प्रतियोगिताओं के षणयन्त्र से आधिपत्य किए पूँजीवाद के क्षद्म की बेमिशाल भाव परिक्रमा कर रहे हैं … Read More