New education policy came, know how much educational change will happen

34 सालों बाद बदली शिक्षा की सूरत


नई शिक्षा नीति अंग्रेजी के साथ मातृभाषा के अलावा संस्कृत व देश की अन्य भाषाओं के सीखने पर जोर देने वाली है ऐसा मानते हुए विश्लेषण कर रहे हैं लेखक वीरेन्द्र बहादुर सिंह


कोरोना लॉकडाउन के दौरान अगर देश में कोई अच्छा काम हुआ है तो वह है देश में घोषित नई शिक्षा नीति। देश की शिक्षा नीति में बदलाव होना चाहिए, इसकी चर्चा वर्षों से चल रही थी। पर बिल्ली के गले मेें घंटी कौन बांधे, यह एक बड़ी समस्या थी। अब तक हमारी शिक्षा रटने वाली शिक्षा थी। लोगों के दिमाग में यह मानसिकता घर कर गई थी कि 2 सौ या तीन सौ पेज की किताब जो विद्यार्थी रट ले, वह अच्छा विद्यार्थी और जो उसे समझ ले, पर किताब के अध्याय रटे न, वह मूर्ख। परिणामस्वरूप दिनोंदिन देश में शिक्षा की गुणवत्ता गिरती जा रही थी। इसलिए विद्यार्थी देश में शुरुआती शिक्षा ग्रहण कर उच्च शिक्षा के लिए विदेश की राह पकड़ रहे थे। इसकी वजह यह थी कि अपने देश की शिक्षा की गुणवत्ता विदेशों से घट रही थी। इसी सब को देख कर आखिर 34 सालों बाद देश में नई शिक्षा नीति की घोषणा की गई। देश के शिक्षाविदों का मानना है कि अगर इस शिक्षा नीति को ठीक से लागू किया गया तो देश में शिक्षा का स्तर काफी सुधरेगा।

नई शिक्षा नीति-2020, देश की शिक्षा में मूलभूत सुधार करने वाली नीति है। 1986 के बाद पहली बार शिक्षा के लिए कोई नीति घोषित की गई है। यह नीति इसरो के अध्यक्ष रहे डा.­ के­ कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में तैयार की गई है। इस शिक्षा नीति को तैयार करने से पहले लगभग दो लाख लोगों की राय कमेटी ने ली थी। जिसमें मात्र शिक्षा की दुनिया से जुड़े लोग ही नहीं थे, आम लोग और अभिभावक भी शामिल किए गए थे। नइ नई शिक्षा नीति को तैयार करने वाले डा­ कस्तूरीरंगन इसरो के वैज्ञानिक तो थे ही, साथ ही साथ देश की अनेक यूनीवर्सिटी से भी जुड़े रहे हैं। इसलिए उन्हें शिक्षा का लंबा अनुभव है। 2017 में नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए 9 लोगों की जो कमेटी बनाई गई, उन्हें उसका अध्यक्ष बनाया गया।

देश की जो नई शिक्षा नीति घोषित की गई है, उसमें अनेक यूनीवर्सिटी के चांसलर और कर्नाटक नॉलेज कमीशन के चेयरमैन रहे डा­ कस्तूरीरंगन की विचारधारा साफ झलक रही है। इस नई शिक्षा नीति के अनुसार 4 साल की कालेज की पढ़ाई के दौरान अगर विद्यार्थी दूसरे या तीसरे साल में किसी मजबूरीवश पढ़ाई छोड़ देता है तो भी उस विद्यार्थी को एकेडमिक क्रेडिट दी जाएगी। इस बार यह खास व्यवस्था की गई है कि अगर वह विद्यार्थी फिर से पढ़ाई शुरू करना चाहता है तो आराम से अपना ग्रेजुएशन पूरा कर सकता है। विदेशों में भी इस तरह की व्यवस्था है। कालेज की चार साल की लंबी पढ़ाई के दौरान विद्यार्थी बीच में ब्रेक लेना चाहे, नौकरी करना चाहे या कोई दूसरा कार्य करना चाहे तो विदेशों में विद्यार्थियों के लिए इस तरह की व्यवस्था की गई है। अब हमारे देश के विद्यार्थियों के लिए भी इस तरह की व्यवस्था उपलब्ध कराई जाएगी। यह एक तरह से उनके लिए आशीर्वाद स्वरूप है। इस तरह विद्यार्थी अपना अधूरा ग्रेजूएशन जब चाहेंगे, तब पूरा कर सकेंगे। नई शिक्षा नीति में अब प्राइवेट कालेज, सरकारी कालेज, डीम्ड यूनीवर्सिटी जैसी सभी उच्च शिक्षण संस्थाओं में एक ही नियम लागू होगा। उसके अनुसार अब यूजीसी और एआईसीडी, दोनों ही संस्थओं को खत्म कर दिया जाएगा। अब उच्च शिक्षण के अनेक मुद्दों के लिए एक ही संस्था होगी। यह एक महत्वपूर्ण घटना कही जा सकती है।

नई शिक्षा नीति में भारतीय शिक्षा को ध्यान में रख कर अमेरिका और यूरोप की भी शैक्षणिक नीति का प्रभाव है। जिससे कि इस नई शिक्षा नीति पर कोई भगवाकरण का आरोप नहीं लगा सके, इस बात का खास ध्यान रख गया है, साथ ही इसका भी ध्यान रखा गया है कि भारत के विद्यार्थी भी दुनिया के विद्याार्थियों से मुकाबला कर सकें। पर इस नई शिक्षा नीति पर सरकार का खर्च बढ़ जाएगा। अब तक शिक्षा पर कुल जीडीपी का 4­3 प्रजिशत खर्च होता था। जिसे बढ़ा कर अब केंद्र और राज्य सरकारें मिला कर शिक्षा पर कुल जीडीपी का 46 प्रतिशत खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है।

नई शिक्षा नीति में 5/3/3/4 की डिजाइन तैयार की गई है। यह एक वैज्ञानिक बदलाव है। इस डिजाइन के अनुसार 3 से 18 साल तक के बच्चे की शिक्षा की व्यवस्था की गई है। जिसमें 3 साल से 6 साल तक के बच्चे को प्ले स्कूल की तरह पढ़ाया जाएगा। उसके बाद 3 साल यानी 6 साल से 9 साल तक के बच्चों को एक से तीसरी कक्षा तक पढ़ाया जाएगा। जिसमें अंक गणितीय ज्ञान मिले, इस तरह का पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा। कक्षा 3 से कक्षा 5 तक का एक अन्य मुकाम होगा, जिसमें मातृभाषा की पढ़ाई अनिवार्य  की गई हैै।

कक्षा 6 से कक्षा 8 तक एक अन्य मुकाम होगा। इस दौरान मातृभाषा सहित, दो अन्य भाषाएं, जिसमें संस्कृत सहित भारतीय भाषाओं के साथ विदेशी भाषाओं के भी सीखने की व्यवस्था होगी। यही बात हमारे देश के बच्चों को दुनिया के बच्चों के साथ खड़े होने में सहायक होगी। इसके अलावा छठी कक्षा से विद्यार्थियों को गणित आसान लगे, इसके लिए कोडिंग सिखाने की व्यवस्था होगी। यह व्यवस्था कक्षा 9 से 12 तक लागू रहेगी। अब तक कक्षा 1 से कक्षा 10 तक एक ही व्यवस्था में विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता रहा है। दसवीं के बाद ऐच्छिक विषयोें को चुनना होता था। जिसमें अब बदलाव किया गया है। इसके अलावा संगीत, कला, फिजिकल ट्रेनिंग (पीटी) जैसे विषय पहले वैकल्पिक थे। अब इन्हें स्तर पर लाया जाएगा, जिससे विद्यार्थी इन विषयों के प्रति आकर्षित हों। इस तरह बारहवीं पास विद्यार्थी एक स्किल के साथ बाहर निकलें, इस तरह की व्यवस्था इस नई शिक्षा नीति में की गई हैै।

अब तक विज्ञान, कॉमर्स या आर्ट्स, अलग-अलग विभागों में विद्यार्थी बंट जाते थे। इस पद्धति को नई शिक्षा नीति में खत्म कर के अब क्रेडिट पद्धति से मूल्यांकन की व्चवस्था की गई है, जो स्वागत योग्य है। नई शिक्षा नीति में खेल-कूद, कला, फैशन, भाषा आदि को महत्व दिया गया है। न कोई विषय ऊंचा है, न कोई विषय नीचा, इस बात को विद्यार्थी समझ सके, इस बात को ध्यान में रख कर नई शिक्षा नीति तैयार की गई है। जिसे काम करना हो, वह कर सके, इस बात को नई सरकार ने स्थापित किया है। पिछले 34 सालों में शिक्षा नीति में बदलाव के लिए कोई सरकार तैयार नहीं थी। मोदी सरकार ने शिक्षा नीति में सुधार कर के देश को आत्मनिर्भर बनाने का एक साहसिक कदम उठाया है। नई शिक्षा नीति अंग्रेजी के साथ मातृभाषा के अलावा संस्कृत या देश की अन्य भाषाओं के सीखने पर जोर दे रही है। अब विद्यार्थी  औरअधिक चमक कर बाहर आएंगे यह निश्चित है।


लेखक मनोहर कहानियाँ एवं सत्यकथा के संपादक रहे हैं|


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